*राम राज्य की संकल्पना व रामराज्य
*राम राज्य की संकल्पना व रामराज्य*
पं यमदग्नि पुरी महाराष्ट्र
हमारे देश भारत में जब विदेशी आक्रांता आकर शासन करने लगे,और हम भारतियों पर तरह के अत्याचार करने लगे,तब हमारे देश के युवा बुजुर्ग बालक सभी उन आक्रांताओं को भगाकर फिर से राम राज्य की संकल्पना सजोना शुरू किया|उसके लिए बहुत से बलिदान हमारे युवा बालक बुजुर्ग और महिलाओं के साथ साथ साधु संतो ने दिए|साधु संतों में आनंद आश्रम का नाम इतिहास में प्रमुखता से लिखा गया है|अनगिनत महिलाओं ने इस देश को म्लेच्छों आक्रांताओं को भगाने के लिए सबकुछ न्योछावर कर दिया|इन महिलाओं में रानी लक्ष्मीबाई,दुर्गा भाभी,रानी दुर्गावती आदि ने किसी की परवाह किये बिना अदम्य साहस का परिचय देते हुए म्लेच्छों आक्रांताओं की नाक में दम कर रखा था|सबका सपना था आजाद भारत श्रीराम जी के आदर्शों का पालन करने वाला होगा|तुलसी दास जी ने जिस तरह रामचरित मानस में रामराज्य को उद्धृत किया है|वही रामराज्य वापस स्थापित करने की संकल्पना लिए लोग अपने अनमोल जीवन की आहुति देते रहे|
आजादी के बाद के भारत की संकल्पना रामराज्य की तरह हो,करते हुए कथित महात्मागाँधी जी भी बार बार लोगों को प्रेरित करते रहते थे|अब आप सब सोंच में पड़ गये होंगे कि महात्मा गाँधी जी को मैं कथित क्यों कह रहा हूँ|इसके मूल में जब आप भी झाँकेगें|उनके क्रिया कलापों पर जब दृष्टिपात करेंगे तब आप भी कथित ही कहेंगे|उनके कुछ क्रिया कलापों पर थोड़ा सा प्रकाश मैं डाल ही देता हूँ|जब आजादी की लड़ाई चल रही थी,सब एक होकर लड़ रहे थे|जैसे ही ए कदम रखे|दो भाग हो गया|ए एक धर्म विशेष की लड़ाई मुख्य रूप से लड़ रहे थे|और उसी की आजादी के लिए विशेष तौर से कोशिस भी कर रहे थे|भारत की आजादी सिर्फ दिखावे के लिए थी|खुद तो बहुत मंहगी मंहगी चीजें बैपर रहे थे|और नग्न खुद सोते थे साथ में दो नग्न महिलाओं को भी लेके सोते थे|और वे महिलायें प्रतिदिन बदल जाती थी|मुसलमान उत्पात करे तो समर्थन करते थे|हिन्दू बचाव भी करे तो हिंसक कह कर विरोध करते थे|हिन्दू अपने अधिकार के लिए लड़े तो उत्पाती द्रोही हिंसक कहके उसका विरोध करते थे और मुसलमान उत्पात करे तो उसे अधिकार की लड़ाई कहके समर्थन करते थे|और शांति दूत बताते थे|आजादी के बाद भी ए अपने उसी धर्म पर चलते रहे|मुसलमानो के लिए ए बार बार सरकार को धमकाते रहते|पर वहीं हिन्दूओं को मरने के लिए ढकेल देते थे|अहिंसा के पुजारी थे|फिर भी द्वितीय विश्व युद्ध में भारतियों को अंग्रेजों की सहायता के लिए लड़ने के लिए भेज दिए|वह भी भारतियों से ही|ए कैसी अहिंसा थी आज तक नहीं समझ पाया|ऐसे अनेक किस्से हैं कथित महात्मा गाँधी जी के|लिखने जाऊँ तो मोटा ग्रंथ बन जायेगा,और हम मूल विषय से भटक जायेंगे|तो मैं ये कह रहा था कि रामराज्य के बारे में ये कथित गाँधी सपना दिखा रहे थे वो तुलसीदास जी वाले रामराज्य से कहीं मेल नहीं खाता|ये मुसलमानो के लिए रामराज्य की कल्पना कर रहे थे|इनकी सोंच संकुचित थी|इनकी सोंच ए थी कि हिन्दू मरता रहे मार खाता रहे|अपनी कमाई खुद न खाये मुसलमानों को खिलाता रहे|इसके लिए इनके ही चलते संविधान में मुसलमानों के लिए विशेष छूट दी गई है|मंदिरों से टैक्स और मस्जिदों को अनुदान यही इनकी नीति रही जो की संविधान के द्वारा भारत में विशेष रूप से लागू की गई|इसलिए इनके रामराज्य में और तुलसीदास जी के रामराज्य में जमीन आसमान का अंतर है|जो कभी भी मेल नहीं खाया न खा सकता है|
अज भी हमारे भारत देश की राजनीतिक पार्टियाँ विगत 77 वर्षों से रामराज्य का सपना दिखाते हुए शासन करती आ रही हैं|जनता आज भी सोंच रही है कि ए तुलसीदास जी के शासक श्रीरामजी वाला राम राज्य कब आयेगा|सपना तो सभी दिखा कर खुद रामराज्य का आनंद ले रहे हैं
और जनता वही घुमा फिरा के आंक्रांताओं वाला ही शासन पा रही है|तुलसीदास जी के शासक प्रभु श्री रामजी का शासन अद्भुत अकल्पनीय है|तुलसीदास जी ने प्रभु श्रीराजी के शासन की व्याख्या करते हुए लिखते हैं,
*राम राज बैठें त्रैलोका|
हर्षित भए गए सब शोका||
बयरु न कर काहू सन कोई|
राम प्रताप विषमता खोई||
दैहिक दैविक भौतिक तापा|
रामराज नहिं काहुहि व्यापा||
सब नर करहिं परस्पर प्रीती|
चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती||
चारिहु चरन धर्म जग माहीं|
पूरि रहा सपनेहुँ अघ नाहीं||
अल्प मृत्यु नहिं कवनिउ पीरा|
सब सुन्दर सब निरुज शरीरा||
नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना|
नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना||*
राम राज्य ऐसा था|न की किसी एक धर्म और एक जाति के लिए विशेष था|समानता की बात आज बहुत होती है|जो समानता की बात करते हैं वही जातिगत जनगणना की बात करके असमानता पैदा कर रहे हैं|आरक्षण की व्यवस्था करके मानव मानव भेद उत्पन्न करके हम सबको आपस में लड़ा रहे हैं|रामराज्य में ऐसा नहीं था|जैसा कि उपरोक्त चौपाइयाँ प्रमाणित कर रही हैं|सब अपने धर्म पर शांति पूर्वक चलते थे|आज की तरह नहीं कि एक देश की ऐसी तैसी करता चले|वह शांतिदूत कहलाए|और जो अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा करते चले उसे अतिवादी कहके प्रताड़ित किया जाय|जो विष उगलता चले वह शांति दूत और प्रेम का मसीहा कहा जाय,और जो स्वयं की रक्षा में जीवन खपाये|वह नफरती कहा जाय|रामराज्य में सभी एक दूसरे से प्रेम करते थे|किसी से कोई बैर नहीं थी|पर आज के शासक रामराज्य का सपना दिखाकर चुनाव दर चुनाव जीतकर शासक बन रहे हैं|और वातावरण को जहरीला बना रहे हैं|जातिगत धर्मगत बॕटवारा करके हम भारतियों को आपस में लड़ाकर हमें म्लेच्छों जैसा शासन प्रदान कर खुद रामराज्य का आनंद ले रहे हैं|और जनता हर तरह से शोषित हो रही है|और सोंच रही है कि कब तुलसीदास जी वाला राम राज आयेगा|और कब हमलोग अवध वाला सुख पायेंगे|
पं.जमदग्निपुरी