कृषि कानून वापस लेने का सच.. देशवासियों को अपने पीएम पर विश्वास होना चाहिए !
*(कृषि कानून वापस लेने का सच….)*
देशवासियों को अपने पीएम पर विश्वास होना चाहिए !
(करण समर्थ आयएनएन भारत मुंबई)
अब समय आ गया है कि हमे के नरेंद्र मोदी को और टूच्चे विपक्षी राजनीतिज्ञों की वास्तविकता समझनी चाहिए। क्योंकि फिर एकबार किसी ना किसी बहाने विपक्ष और कोई नया आंदोलन शुरू करवाने से पहले हमे किसान आंदोलन के पीछे की इस सच्चाई को जानना जरूरी है… इससे हमें अहसास होगा कि, विपक्षियों ने अपने स्वार्थ के लिए हमारे देश को किस मुश्किल में झोंक दिया था।
शायद जनसाधारण को यह पता भी नहीं होगा कि, कई वर्षो से हम लोग सरकार व्दारा इंपोर्टेड दाल याने लेंटील दाल खा रहे थे। आज से करीब दो वर्ष पहले मोदी ने इस पर रोक लगानी शुरू कर दी, और अब इसे पूरी तरह से बंद करवा दिया। और यह शुरुआत मानकर देशद्रोही गुट एक हो गए और आयोजन हुआ कृषि बिल का विरोध।
इनका कृषि बिल तो बहाना था, लेकिन असली किस्सा कुछ यूं है; जैसे ही 2005 में मौनी बाबा पीएम मनमोहन सिंह ने दाल पर दी जा रही सब्सिडी को खत्म कर दिया और कुछ समय बाद ही काँग्रेस सरकार ने नीदरलैंड ऑस्ट्रेलिया और कनाडा से समझौता कर दाल आयात करना शुरू कर दिया। इस डील में देश को बड़ा घाटा कराया गया। कनाडा ने अपने यहां लेंटील दाल के बड़े-बड़े फार्म स्थापित किए जिसकी जिम्मेदारी वहां रह रहे पंजाबी सिखों के हवाले कर दी गई। और देखते ही देखते कनाडा से भारत में बड़े पैमाने पर दाल आयात होने लगा। इन बड़े आयातकों में अमरिंदर सिंह और 1984 में सिक्खों के हत्यारे कमलनाथ जैसे कांग्रेसी भी थे और बादल भी। क्योंकि इनका राष्ट्र धर्म सिर्फ पैसा है, पर जैसे ही मोदी ने आयात पर रोक लगाई इनका खेल शुरू हुआ। इनके कनाडा के फार्म सूखने लगे। और इन खालिस्तानियों की कनाडाई नौकरी जाने लगी इसीलिए जस्टिन ट्रुडो ने किसानों के आंदोलन का समर्थन किया था अब समझे कनाडा, किसान आंदोलन और खालिस्तानियों के साथ काँग्रेस का गठजोड़।
अब जब कनाडा सरकार द्वारा धमकी दी जा रही है कनाडा के खालिस्तानी सिखों को पंजाब वापस भेजा जाएगा। वैसे भी खालिस्तानी कांग्रेसियों की ही देन है। इसलिए कृषि कानून का सबसे ज्यादा विरोध विदेशी ताकतें और खालिस्तानी सिख कर रहे हैं। याद रहे, जिस देश में अन्न बाहर से खरीदना नहीं पड़ता वही देश सबसे जल्दी विकसित होते है, और आज हमारा भारत इस दिशा में अग्रसर है।
अब अदानी और अंबानी ने ग्रुप इन्होंने जो भी व्यापार शुरू किया, वहां विदेशी मोनोपली का खात्मा करते हुए भारतीय ग्राहकों को जबरदस्त फायदा कराते हुए मुनाफा कमाया है। अदानी ने विदेशी कंपनियों और साउथ अफ्रीका की कंपनी जिनमें पिछवाड़े से भारत के गद्दार नेताओं का ही पैसा लगा हुआ है, सभी की 70% हिस्सेदारी को वापस ले लिया, इसी के अगले चरण में रिलायंस 5G का स्पेक्ट्रम है, जिससे चाइना की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी हुवेई जिसमें जिनपिग के अलावा वहां की कम्यूनिस्ट पार्टी के सभी सरकारी नेताओं के पैसे लगे हुए हैं उसके पैर भारत ही नहीं विश्व में उखड़ जाएंगे। इसलिए यह चीनी एजेंट खालिस्तानी किसान रिलायंस जियो के टावर तोड़ रहे थे। अब कुछ समझे किसानों का टॉवर तोड़ कनेक्शन क्या है ? सोचने जैसी बात है कि, आज से पहले कितनी लूट मची हुई थी ? उदाहरण: जब जियो नेटवर्क नहीं था तब हमारा मोबाइल बिल कितना आता था ? कितनी लूट चलती थी लेकिन आज हर मोबाइल कंपनी अपने दाम घटाने पर मजबूर है।
अदानी कृषि क्षेत्र में प्रगति कर रही है तो विरोध हो रहा है, अदानी गोदाम स्टोरेज क्यों बना रहा है ? क्या हम में से कोई कभी कोकाकोला नेस्ले, आयटीसी, एमेजाॅन की फैक्ट्री या स्टोरेज में गए हो ? जब अपने देश में पेप्सिको, वॉलमार्ट, हिन्दुस्तान यूनीलीवर, आईटीसी जैसी विदेशी कंपनियों ने पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र में बड़े-बड़े गोडाउन खड़े कर लिए तब कोई विरोध नहीं हुआ… तो अब भारतीय कंपनी टाटा, अंबानी,अदानी का ही विरोध क्यों ???
रिलायंस रिटेल, रिलायंस डिजिटल अब सारे देश में पहुंच रहे हैं, तो अमेज़न और फ्लिपकार्ट को तकलीफ़ होना स्वाभाविक है। जैसे स्वदेशी पतंजलि के आने से हिन्दुस्तान यूनीलीवर (कोलगेट, लक्स, पाँड्स) का एकाधिकार समाप्त हो गया, तो उन्हें तकलीफ़ तो होनी ही थी।
तो चीन दुनिया भर के साथ भारत में भी 5G तकनीक बेचने को उतावला हो रहा है, ऐसे में जियो की संपूर्ण स्वदेशी 5G तकनीक से उसे तकलीफ़ होगी ही। अदानी पोर्ट्स और अदानी एंटरप्राइज़ के कारण अब सब विदेशी और विधर्मियों की मोनोपली बंद हो गई है।
अब जब अपने देश के उद्योगपति आगे बढ़ रहे हैं, देश को फायदा पहुंचा रहे हैं, तो अपने ही देश के कुछ लोग उनका विरोध क्यों कर रहे हैं ? और ऐंसे प्रकल्पों को किसान व्दारा विरोध करने का तथ्य क्या है ?
*किसानों के नाम का पूरा खेल समझिए:*
अब पंजाब के किसान नेता उनके विरोध में आ गए हैं, अदानी गोडाउन क्यों बना रहा है, हमारी ज़मीन हड़प लेगा, जनता को अनाज मिलेगा नहीं, जनता भूखी-प्यासी रहेंगी, किसानों का रोजगार छिन जाएगा, आदि-आदि…
पंजाब के दूर दराज गांवों में आप देख सकते हैं, वहां देशी-विदेशी कंपनियों, ऑस्ट्रेलिया-कनाडा के एनआरआईयों के बड़े बड़े गोडाउन बरसों से मौजूद हैं, वह हमें चलता है। लेकिन अब वही सब टाटा, अंबानी या अडानी गोडाइन बनवा रहा है तो कहा जा रहा है कि, अब जमाखोरी होगी, और कीमतें बढ़ेंगी ? तो इससे पहले जमाखोरी नहीं होती थी ?
हकीकत तो यह है कि, देश में मौजूदा गोडाउन की कॅपेसिटी उत्पादित अनाज-फलों का भंडारण क्षमता नहीं है। इसलिए अब तक जो लाखों टन अनाज, सब्ज़ियां और फल सड़ जाते थे, जिससे हमें अधिक दाम चुकाने पड़ते थेवह अब इनके गोडाउन में सही तरह से भंडारित हो सकेंगे और जनता को सस्ते दामों पर उपलब्ध रहेंगे।
तकलीफ़ यह है कि, अब महंगाई काबू में रहेगी और बिचौलियों को मिलने वाली मोटी मलाई भी बंद हो जाएगी।
अपने राष्ट्र धर्म की महत्ता को पहचानिए और वर्तमान नेतृत्व की क्षमता को भी, जिसने एक दिन में ही विपक्षियों, पाकिस्तानियों, चाइना, कनाडा, खालिस्तानियों, खांग्रेसियों, वामियों, आपियों, सपैय्यों, बस्पैय्यों, ओवैसियों को बिना किसी प्रत्यक्ष कार्यवाही के ही चारों खाने चित कर दिया, अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि मोदी, अमित शाह, अजीत डोभाल, जैसे राष्ट्रवादियों का मास्टर स्ट्रोक क्या था।
*मनमोहन सिंह का सोशल मीडिया अकाउंट बयान*
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ करते हुए काँग्रेस ने मुझे काम करने न नहीं दिया, यह सार्वजनिक तौर पर लिखकर सबको चौकाया है। अब जनता को इस बयान से यह समझना होगा कि विपक्षियों की चालों को नजरंदाज कर नरेंद्र मोदी देश की भलाई में लगे हैं इस तथ्य को स्वीकार करना चाहिए।
राष्ट्रहित में, सामूहिक चेतना निर्माण हेतु, इस पर विचार करे और दुसरों प्रेषित करें ताकि पूरा देश जान सके और स्वच्छ भारत के निर्माण में अपना छोटा सा योगदान दें क्योंकिः अब ये निश्चित है, की हमारा भारत अब बनेगा… “स्वच्छ और अखंड”।
हांल ही में मनमोहन सिंह ने भी काँग्रेस के कारण अपनी नाकामी को अपने आधिकारिक अकांउट से इस बात को मानते हुए मोदी की तारीफ कि है, इस फोटो में हम देख सकते हैं। (करण समर्थ : आयएनएन भारत मुंबई )