सफर में एक दिन क्यूं हमसफर भी छूट जाते

सफर में एक दिन क्यूं हमसफर भी छूट जाते
डा संजीदा ख़ानम शाहीन,जोधपुर
========== *ग़ज़ल* ==========
*सफर में एक दिन क्यूं हमसफर भी छूट जाते हैं ,*
*ग़लत फहमी के मारे दिल के रिश्ते टूट जाते हैं ।।*
*कभी स्कूल से आते हुए जब लेट हो जाऊं ,*
*तो मम्मी मुंह बना लेती है पापा रूठ जाते हैं।।*
*कोई परखी हुई आहट अगर दर पर सुनाई दे,*
*न जाने क्यूं मिरे हाथों से बर्तन छूट जाते हैं।।*
*बड़ी मुद्दत से तेरी सारी बातें नोट करती हूं ,*
*तिरे वादे बराबर आजकल क्यूं झूठ जाते हैं।।*
*तू जिस दिन देखता है रास्ते में मुझको मुड़ मुड़कर*
*मेरे दिल की ज़मीं पर बेल बूटे फूट जाते हैं*
*मेरे सपने हैं संजू नींद जो आने नही देते*
*जो सपने नींद में आते हैं वो तो टूट जाते हैं।।*
✒️ *.डॉक्टर,संजीदा* *खानम,शाहीन,*