मोहर्रम और कर्बला को हमेशा याद रखिये,यह ज़िन्दगी का सबक है…. *डॉ ब्रजेश कुमार यदुवंशी*

मोहर्रम और कर्बला को हमेशा याद रखिये,यह ज़िन्दगी का सबक है….
*डॉ ब्रजेश कुमार यदुवंशी*
मोहर्रम का चाँद हो गया । सीखना इस महीने से,सीखना कर्बला से,सीखना इमाम हुसैन से,सीखना शहीदों और बीबी ज़ैनब से की कैसे ज़ुल्म के खिलाफ खड़ा हुआ जाता है ।
मोहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है, इसकी मुबारकबाद नही दी जाती । ऐसा हज़रत ईमाम हुसैन और कर्बला के शहीदों के गम और उनकी शहादत के सम्मान में किया जाता है । कोई इसके इतर भी चल सकता है, यह उसकी मर्ज़ी । कर्बला ज़बरदस्ती का नाम नही बल्कि सहयोग और त्याग का नाम है ।
मैं मोहर्रम को कभी इस्लामी नुक्ते नज़र से नही देखता । मैं इसे उस आंदोलन की तरह देखता हूँ, जिसने यज़ीद को चुनौती दी । जिसने शहादत चुनकर ज़ुल्मी के पाँव उखाड़ दिए । जिसने प्यासे रहकर ग़ुरूर के महलों की दीवारें चिटखा दीं । जिनकी तारीख़ में कर्बला जैसे उदाहरण हों,वह किसी भी कीमत में अधर्मी और पापी के सामने नही झुक सकते,जो झुक जाते हैं, उनके दिलों से ईमाम हुसैन रुखसत हो जाते हैं ।
मोहर्रम में कर्बला की जंग और उसके बाद बीबी ज़ैनब का कर्बला से निकलकर,शहीदों को घर घर पहुँचाना,दुनिया का पहला आंदोलन था,जिसे किसी औरत ने लीड किया था । उन्होंने अपनी आंखों देखी ज़ुल्म की सियाह रातों को,तपती दोपहर को और खून से भीगी सुबह की सच्चाई,दुनिया के सामने रखी । बच्चों की प्यासे गले में चुभे तीर के दर्द को बतलाया,तो बुज़ुर्गों का जोश से लड़ते हुए शहीद होना बतलाया । रसूल के चश्मे चिरागों के सर, नेज़ो पर चढ़े,जब कर्बला से जीत की जंग में लाए जा रहे थे,तब ही तय हो गया तो,जो आज जीत के घमंड में इतरा रहा है, असल में वह ही हार गया है ।
मोहर्रम ही है, जो हमें बतलाता है कि मैदान में लाव लश्कर लेकर जीतने वाला ही नही जीतता है, बहुत बार मूल्यों के लिए लड़ते हुए शहीद होने वाला जीतता है । मूल्यों के लिए दी गई शहादत ही असल जीत है ।
जब किसी का ज़ुल्म तुम्हे डुबाने लग जाए,तुमसे अधर्म करने को कहे,तो तुरन्त उसके ख़िलाफ़ खड़े होना । हर धर्म मे ऐसे उदाहरण हैं।
ज़ुल्म के ख़िलाफ़, एक हो, बिना डरे,बिना बहके,हर अधर्म का मुकाबला करो,पाप के विरुद्ध खड़े हो।
मोहर्रम से सीखें,यह महीना बहुत बड़ा सिलेबस है, इंसानी ज़ात को बचाए रखने के लिए,क्या कर गुज़रना पड़ेगा,सारे चैप्टर इसमें मौजूद हैं । हर एक शहीद को पढ़िए,कर्बला को पढ़िए और तय कीजिये कि मूल्यों की रक्षा के लिए क्या कुछ छीन जाएगा,मगर उफ्फ नही करनी है । मोहर्रम और कर्बला को हमेशा याद रखिये,यह ज़िन्दगी का सबक है….
*डॉ ब्रजेश कुमार यदुवंशी*
सम्पादक, साहित्यकार, मान्यता प्राप्त पत्रकार