05/07/2025
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वाराणसी*काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी श्री विश्वभूषण जी की गंगा सप्तमी को लेकर प्रमुख कथा,लेख व रोचक प्रसंग*

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*वाराणसी*काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी श्री विश्वभूषण जी की गंगा सप्तमी को लेकर प्रमुख कथा,लेख व रोचक प्रसंग*

आइडियल इंडिया न्यूज़

अंकुर मिश्रा वाराणसी

वाराणसी : दिनांक 14 मई 2024 को गंगा सप्तमी का सनातन पर्व है। इस पर्व की सनातन परंपरा में विशिष्ट महत्ता है। सनातन आस्था में प्रवृत्त जनमानस हेतु प्रस्तुत है गंगा सप्तमी पर्व की कथा एवं मां गंगा एवं श्री काशी विश्वनाथ महादेव का “गंगा रहस्य” से उद्धृत रोचक प्रसंग।

“गंगा सप्तमी की पौराणिक कथा”

मां गंगा को सनातन परंपरा में ब्रह्मदेव के कमंडल से उत्पन्न माना जाता है। पौराणिक कथानक के अनुसार चक्रवर्ती सम्राट सगर के अश्वमेध यज्ञ के आयोजन में अश्व चोरी हो गया। सम्राट सगर के पुत्रों ने अश्व को ढूंढते समय कपिल मुनि से धृष्टता कर दी। क्रोधित कपिल मुनि ने सगर पुत्रों को भस्म कर दिया। कालांतर में सम्राट सगर के वंशज भगीरथ ने अपने इन भस्म बांधवों की मुक्ति हेतु ब्रह्मदेव की घोर तपस्या की। ब्रह्मदेव ने मुक्ति का उपाय मां गंगा की जलधारा को बताया। परंतु मां गंगा का वेग पृथ्वी के लिए असहनीय था अतः मां गंगा का धरावतरण असंभव प्रतीत होता था। दृढ़ संकल्प के स्वामी सम्राट भगीरथ ने हार नहीं मानी। भागीरथ ने इस समस्या के समाधान हेतु महादेव शिव की अखण्ड साधना की। महादेव के प्रसन्न होने पर भगीरथ ने अनुरोध किया कि गंगा जी के वेग को महादेव अपनी जटाओं में धारण कर मंद कर दें जिससे पृथ्वी माता, गंगा जी का प्रवाह धारण कर सकें। महादेव ने भगीरथ की याचना स्वीकार कर ली। इस प्रकार गंगा मां का धरावतरण संभव हो सका। ब्रह्मकमंडल से गंगा जी के सरिता स्वरूप में प्राकट्य का उत्सव गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है।

 

“काशी की गंगा”

पौराणिक कथानक में गंगा रहस्य की एक कथा के अनुसार पाण्ड्य नरेश पुण्यकीर्ति ने गंगा जी से यह वर मांगा था कि वह प्रतिदिन गंगा मां का देवी स्वरूप में साक्षात दर्शन कर सकें। तब गंगा जी ने पुण्यकीर्ति से कहा कि इसके लिए पुण्यकीर्ति को गंगा जी के गृहनगर में निवास करना होगा। पाण्ड्य नरेश की जिज्ञासा पर गंगा जी ने यह रहस्य बताया कि उनका गृहनगर काशी है। गंगा जी ने बताया कि अपने प्रवाह के क्रम में वह शिव की जटाओं से मुक्त हो हिमालय शिखरों से उतर प्रयाग होते हुए काशी की सीमा पर पहुंचीं। काशी के पुराधिपति भगवान विश्वनाथ जी ने गंगा जी को सीमा पर ही बांध दिया। इससे गंगा जी का सम्राट सगर के पूर्वजों के भस्म होने के स्थल तक जाने का मार्ग अवरूद्ध हो गया। भगीरथ को गंगावतरण से अभीष्ट पूर्वजों की मुक्ति का अपना मनोरथ असिद्ध होता जान पड़ा। मनोरथ की सफलता हेतु भागीरथ एवं उनके अनुनय पर मां गंगा ने भी भगवान विश्वनाथ से प्रवाह मुक्त करने की याचना की। तब भगवान विश्वनाथ ने मुक्त प्रवाह हेतु गंगा जी से तीन वचन लिए, प्रथम यह कि गंगा जी काशी के घाटों को अपने प्रवाह से क्षतिग्रस्त नहीं करेंगी। दूसरा यह कि गंगा जी का कोई जलीय जन्तु काशी में मनुष्यों को क्षति कारित नहीं करेगा। श्री विश्वनाथ जी ने तीसरा वचन यह लिया कि गंगा जी अपने साक्षात देवी स्वरूप में काशी में ही विराजेंगी। तब से काशी ही गंगा जी का गृहनगर है।

गंगा सप्तमी की समस्त सनातन बंधुओं को अग्रिम शुभकामनाएं। मां गंगा एवं श्री काशी विश्वनाथ जी महादेव समस्त सनातन जगत का कल्याण करें।

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