आता है मुझको याद अक्सर वो गुजरा हुआ जमाना

आता है मुझको याद अक्सर वो गुजरा हुआ जमाना
गुजरा हुआ वो कल
एक बेहतरीन कविता
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आता है मुझको याद अक्सर वो गुजरा हुआ जमाना करता था जिसकी बातें रात दिन ये वहमी जमाना
वो हाथो मे हाथ वो जन्मो का साथ
कहते थे तुम हँसकर साथ जीना साथ मरना वो कसमे निभाना याद आता है वो जमाना
वो खाना पीना वो रोना हंसना वो चुपके से बाहो मे भरना याद आता है वो जमाना
वो लड़ना झगड़ना वो रूठना मनाना
रातो मे मोहब्बत की बाते करना याद आता है वो जमाना
जागती नींदो मे सोना वो सोने का बहाना याद आता है वो जमाना
वो पल्लू का पकड़ना पास बुलाना
बुलाकर बिठाना और बड़े गौर से देखना दिखाना
याद आता है वो जमाना
वो रूठना मनाना वो प्यार से खट खटाना नजरो का तीर चलाना
याद आता है वो जमाना
वो ख्यालो मे खोना वो चुपके से रोना
वो फोन पर घंटो बाते करना याद आता है वो जमाना
वो खिड़की से आना देहरी से जाना
वो जाते हुए रुक जाना याद आता है वो जमाना
वो छुप छुप कर देखना नज़रो को चुराना याद आता है वो जमाना
वो तोहफों का लाना और लाकर
छुपाना याद आता है वो जमाना
वो मुड़कर देखना बिमारी का बहाना
याद आता है वो जमाना
वो उदासी का मंजर वो जुदाई की डर
वो तन्हाई में तड़पना याद आता है वो जमाना
कांटा चुभा धीरे से हटाना याद आता है वो जमाना
तक़लीफो मे साथ आँसू बहाना याद आता है वो जमाना
वो गोद मे लेकर लाड़ लड़ाना याद आता है वो जमाना
वो चेहरे से काली जुल्फो को हटाना
याद आता है वो जमाना
वो फुलो का लाना लाकर हाथो मे थमाना याद आता है वो जमाना
वो चमेली का गजरा लाना बालो मे लगाना याद आता है वो जमाना
वो धीरे से पैरो को उठाना और
पायल पहनाना पहनाकर बजाना याद आता है वो जमाना
वो गप्पे लड़ाना वो झूठा चिढ़ाना चिढ़ाकर रुलाना याद आता है वो जमाना
वो गाना गाकर नग्मे सुनाना याद आता है वो जमाना
किताब घर मे जाना किताब हटाते हुए दीदार कराना याद आता है वो जमाना
डॉक्टर संजीदा खानम,शाहीन,✍️