06/07/2025
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सर्दी के दिन और दादी माँ की बोरसी

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सर्दी के दिन और दादी माँ की बोरसी..
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पारिवार से लेकर गांव और देश के माहौल पर होती थी चर्चा

भुट्टे, आलू , शकरकंद, मटर भूनकर खाने का आनंद ही कुछ और था

संस्कार श्रीवास्तव

 

शहरों में बस चुके जिन लोगों की जड़ें गांवों में हैं उन्हें जाड़े की रातों में बोरसी की आग की स्मृतियां भूली नहीं होंगी। घर के दरवाजे पर या दालान में बोरसी का मतलब था शीत से संपूर्ण सुरक्षा। वातावरण की ठंड और आग की ऊष्मता के घालमेल से बच्चों को बचाने के लिए उनके शरीर के हर हिस्से में लिपटी पुराने कपड़ों की गांती हुआ करती थी। अब के समय में शहरों या गांवों में भी पक्के, सुंदर घरों वाले लोग धुएं से घर की दीवारें काली पड़ जाने के डर से बोरसी नहीं सुलगाते। उसकी जगह आधुनिक इलेक्ट्रिक रूम हीटर ने ले ली है। मिट्टी और खपरैल के मकानों में ऐसा कोई डर नहीं होता था। बुजुर्ग का मानना था कि दरवाजे पर बोरसी की आग हो तो सिर्फ ठंढ ही नहीं भागती, बल्कि घर में सांप-बिच्छू और भूत-प्रेत का प्रवेश भी बंद हो जाता है। सार्वजनिक जगहों पर जलने वाले अलाव जहां गांव-टोले के चौपाल होते थे। वहीं बोरसी को पारिवारिक चौपाल का दर्जा हासिल था। शाम के बाद जब घर के लोग बोरसी के पास एकत्र होते थे तो वहां पारिवारिक समस्याओं से लेकर गांव के माहौल पर चर्चा और देश की दशा-दिशा पर बहसें चलती थीं। कई मसले बोरसी के इर्द गिर्द सुलझ जाते थे। किशोरों के रूमानी सपनों को बोरसी की आग ऊष्मा देती थी। बच्चों के लिए उसका रोमांच यह था वहां मकई के भुट्टे, आलू , शकरकंद, हरी मटर भूनकर खाने के अवसर उपलब्ध थे। बिस्तर पर जाते समय बोरसी बुजुर्गों या बच्चों के बिस्तरों के पास रख दी जाती था।

आज की पीढ़ी के पास बोरसी की यादें नहीं हैं। जिन बुजुर्गों ने बोरसी की गर्मी और रूमान महसूस किया है उनके पास आधुनिक घरों की डिजाइनर दीवारों और छतों के नीचे बोरसी की आग सुलगाते की आज़ादी अब नहीं रही ! सब कुछ अब तकनीकी पर आकर सिमट कर रह गया…….
तकनीकी से हम जितना अधिक जुड़ते जा रहे हैं उतना ही समाज और अपनों से दूर होते जा रहे हैं। पहले के समय में जब उस बोरसी के इर्द-गिर्द हम सब परिवार वाले एक साथ बैठते थे तो एक दूसरे के दुख सुख को जानते थे और उसका निवारण करने में एक दूसरे का सहयोग करते थे किंतु अब वह चीजें नहीं रही।
एक तरह से यह कह सकते हैं कि आधुनिकता की इस होड़ ने आपसी सौहार्द और आत्मीयता को काफी हद तक खत्म कर दिया है। पहले सा वह जुड़ाव अब नहीं दिखता।

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