*ईश्वरीय रक्षाबंधन से ही जीव सुरक्षित*

*ईश्वरीय रक्षाबंधन से ही जीव सुरक्षित*
आइडियल इंडिया न्यूज़
लवकुश पांडेय कुशीनगर
,, परमहंस स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज के प्रवचन से साभार प्रस्तुति,,
यह रक्षाबंधन पूरी मानव जाति को एक संदेश देता है कि हम सब लोग पहले विचार करके देखें कि जिस परिवार में हम हैं। हमारा जीवन किसके द्वारा सुरक्षित है। एैतिहासिक घटनायें बता रही हैं। संसार में घटनेवाली हर घटना अपने आप में एक संदेश लिये होती है। जब द्रौपदी की साड़ी खींची जा रही थी तो भीम बैठे थे, कदाचित यदि हम इतने भी बलशाली हो, भीम जैसे, अर्जुन जैसे, भीष्म जैसे तब भी हमारे द्वारा द्रौपदी तो सुरक्षित नहीं है। सब ओर से निराश होकर के जब द्रौपदी ने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान को आना पड़ा।
आप रक्षाबंधन में धागा ही तो बांधते हैं। भगवान श्रीराम कहते हैं कि जहां भी आपकी ममता है। आशक्ति है। सबको समेटकर मेरे चरणों में बाँध दो। यदि ऐसा करते हो तो वह भक्त प्रभु के ह्रदय में स्थान पा जायेगा। इस क्षमता वाला भक्त प्रभु के ह्रदय में रहता है। कवच के रूप में तो परमात्मा है। फिर उसे भय कहां, दुःख कहां, यदि ह्रदय में कोई ऐसा यंत्र या अस्त्र-शस्त्र होगा जो प्रभु को भेद सके तभी वह भक्त तक पहुँच सकता है। भगवान के सच्चे भक्त का कोई अनिष्ट कर ही नहीं सकता।
संसार की किसी भी प्रकार की उपलबिध हमें जीवन में आने वाली तबाही एवं दु:खों से नहीं बचा सकती और एक दिन इस उपलबिध का अंत भी निशिचत है। जीवन की तबाही से मात्र संत कृपा एवं उनसे प्रदत्त साधन ही बचा सकता है। बशर्ते हमारा मन सरल एवं अभिमान रहित हो, एक मात्र संत ही हमारे कल्याण का, सुरक्षा का, समृद्धि का तथा स्थाई सम्मान का स्रोत है। लेकिन जिन संतों से यह सब सुलभ है। वह पुण्य पुरूषार्थ से उपलब्ध होते हैं। ”पुण्य पुंज बिनु मिलहि न संता इस पुण्य के लिए एक नाम ऊँ अथवा राम के नाम का श्रद्धा से जप करो। कहीं संत उपलब्ध हाें तो टूटी-फूटी सेवा अवश्य करो। नाम जप एवं सेवा नियम में ढलते ही संत की प्राप्ति सम्भव है। प्राप्ति होते ही समर्पण भाव से साधना एवं सेवा में लग जाओ।
कर्म बचन मन छांडि छल, जब लगि जनन तुम्हार।
तब लगि सुख सपनेहु नही, किये कोटि उपचार।।
ऐसा करने से ईश्वर को अनुकूल करने वाले सम्पूर्ण गुण स्वत: आपके ह्रदय में आ जायेगें। आप सदैव के लिए सुरक्षित हो जायेगें। दूसरों को सुरक्षा प्रदान करने की सामर्थ्य पा जायेगें।
*ऊँ श्री सदगुरूदेव भगवान की जय