06/07/2025
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उन्मुक्त गगन में   उन्मुक्त उड़ानें भरने को , अंतर्मन विहग मचलता है

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शीर्षक – उन्मुक्त गगन में

उन्मुक्त उड़ानें भरने को ,

अंतर्मन विहग मचलता है ||

 

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तोड़ बेडियो को सारे,

अंबर छूने को उछलता है ||

 

छोड़- भ्रम के अंधेरे को जैसे,

पथिक सन्मार्ग से चलता है||

 

एक अकेला ही पथ पर देखो,

सदैव मशाल सा जलता है ||

 

आत्मविश्वास सच की ताकत,

हरकदम साथ ही चलता है||

 

सबका अंतर्मन शीतल कर ,

हिम सा स्वयं पिघलता है ||

 

विरले ही होते हैं जो सबके हित,

जीवन के सार्थकता में ढलता है||

 

समय-समय पर लोगों का,

सोच स्वभाव बदलता है||

 

धरती पर देव दूतों का,

अवतरण काल तक चलता है||

स्वरचित =सुप्रभा पाठक

यू.पी वाराणसी

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