05/07/2025
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एक बार जरूर पढ़िए और सोचिए.. काश !ट्वीन टावर को ध्वस्त करने की बजाय राष्ट्रीय सम्पत्ति बनाकर भ्रष्टाचार में लिप्त दोषियों को सजा दिलाई गई होती

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*काश !ट्वीन टावर को ध्वस्त करने की बजाय राष्ट्रीय सम्पत्ति बनाकर भ्रष्टाचार में लिप्त दोषियों को सजा दिलाई गई होती**

👉दर्द भरी दास्तां ट्वीन टावर की जुबानी

आइडियल इंडिया न्यूज़
संतोष कुमार नागर ,रमाशंकर निषाद

सोनभद्र

  1. विशेष रिपोर्ट
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मैं तीस मंजिल का ट्वीन टावर हूं, जिसे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के आधार पर जमींदोज कर दिया गया। जैसे कोई भी व्यक्ति खुद का जनक नहीं हो सकता, वैसे ही मैं भी खुद अपने आप बन कर खड़ा नहीं हो गया। मेरे निर्माण में देश की ऊर्जा और अरबों की सम्पत्ति खर्च हुई। सीमेंट, बालू, सरिया, ईंट, लकड़ी, लोहा मेरे रगों में प्रवाहित हो रहा था।
नौ मीटर के छोटे से फासले पर मैं दिल्ली के समीप नोएडा में कुतुबमीनार से ऊंची हैसियत में पहुंच गया था। पास – पास हम जुड़वां भाईयों की तरह खड़े थे, सो नाम भी पड़ गया ट्वीन टावर। माना मेरा जन्म नाजायज था, पर सच यह भी है कि नाजायज औलादों के जन्म में उनकी अपनी कोई गलती नहीं होती। कूड़े के ढेर में पाये जाने के बावजूद मुझे हमारा सभ्य समाज भले ही अनाथालय में पालता है, पर पाल लेता है, फांसी पर नहीं चढ़ाता।
कुछ लोग दोगला या हरामी कहकर उपेक्षा की नजर से देखते हैं, तो कुछ ऐसी भी दम्पत्तियां होती हैं, जो इन्हें गोंद ले लेते हैं। फांसी पर तो कदापि नहीं चढ़ाया जाता, पर मैं निर्जीव, बेजुबान ट्वीन टावर अदालत में पूछ भी नहीं सका-‘ मी लार्ड! मुझे बनाने वाले बिल्डर अगर मेरे अय्याश बाप थे, नोएडा विकास प्राधिकरण के आला अफसर और इनकी नियुक्ति करने वाले मंत्रियों ने मां की भूमिका निभायी।

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मेरा दोगलापन प्रमाणित होने के साथ ही मेरे अनैतिक माता-पिता भी चिन्हित हुए ना। सजा तो उन्हें देनी थी, उनको सजा देते, कड़ी से कड़ी सजा देते। मै चूं तक न करता, लेकिन आप ने आदमी होने के नाते आदमियों को बचा लिया, थोड़ी सी सजा उन्हें दी और मुझे फांसी पर लटका दिया। एक बार पूछा तक नहीं-बता तेरी आखिरी इच्छा क्या है?, खुंखार जानवरों की तरह चिड़ियाघर में ही डाल देते, अधिग्रहित कर लेते। सरकारी दफ्तर बना लेते, सरकार के चहेते कार्पोरेट्स घरानों को दे देते। कुछ भी करते देश में पैदा किये गये सीमेंट, सरिया, ईंटों की लाज भी रह जाती और मैं भी देश के विकास का हिस्सा बन जाता,। पर हुजूर! आप ने तो मुझे सुना ही नहीं और सुनते भी कैसे मैं निर्जीव जो ठहरा।’
‘हां !आप मुझे मेरे तर्क से ही निरुत्तर जरूर कर सकते हैं और वह यह कि -‘ बेटा ट्वीन टावर! तुम जब निर्जीव हो तो तुम्हारी हत्या कैसे हो सकती है?’
वैसे यह सच है कि एक छोटे से पेड़ के कटने पर घड़ियाली आंसू बहाने वालों को भी मेरी असामायिक मृत्यु पर जरा भी कष्ट नहीं हुआ। क्योंकि मेरे लिए, मेरी सुरक्षा हेतु देशवासियों ने भी आवाज नहीं उठाई हां! मीडिया वाले जरुर मेरी ध्वस्त लीला दिखाने के लिए बेहद सक्रिय भूमिका में दिखाई दिए थे। बहरहाल ,अब मैं दोबारा खड़ा तो होे नहीं सकता। लेकिन इतना तो जरूर उम्मीद करता हूं कि मुझे पैदा करने वाले नाजायज फायदा उठाने वालों को चाहे कितना भी प्रभाव शाली हो कठोरतम सज़ा मिलनी चाहिए। जय हिन्द !जय भारत!! (इति)। प्रस्तुति 👉 *🙏🙏🇳🇪👏👆👆👆*

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