महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार की दशा दिशा पर बुद्धिजीवियों की प्रतिक्रिया
विपरीत विचारों का गठजोड़ कब तक!
महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार की दशा दिशा पर बुद्धिजीवियों की प्रतिक्रिया
आइडियल इंडिया न्यूज़
विशेष संवाददाता द्वारा
सोनभद्र । महज ढाई वर्ष पहले
विपरीत राजनीतिक विचारधारा के गठजोड़ से बनी उद्धव सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं ।इस राजनीतिक घटना क्रम की चर्चा सोनभद्र में भी हो रही है ।एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना विधायकों का एक बड़ाधड़ा बताया जा रहा है गुरुवार को सुबह तक गोहाटी में था ।
मीडिया फोरम ऑफ इंडिया प्रयाग ट्रस्ट के राष्ट्रीय कार्यकारीअध्यक्ष मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी का कहना है कि देश में राजनीतिक सुधार की आवश्यकता को राजनीतिक दल
बेरहमी से नज़र अंदाज़ कर रहे हैं । व्हिप से बचने के लिए छिद्र छोड़े गए हैं । चुनाव पूर्व और चुनाव के बाद राजनीतिक गठबंधन के लिए कोई स्पष्ट गाइड लाइन के अभाव का खामियाजा आम मतदाता को भुगतना पड़ता है । वोटर जिस
पार्टी के खिलाफ वोट देते है , वो पार्टी भी सत्ता का हिस्सा बन जाती है ।
पत्रकार राकेश शरण मिश्र ने कहा कि हॉर्स ट्रेडिंग पर रोक के
लिए प्रभावी कानून का अभाव अब आड़े आ रहा है राज्यपाल
और विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका को लेकर प्रभावी नियम
न होने से आये दिन जनादेश काअपहरण होता रहता है ।
पत्रकार राजेश द्विवेदी राज ने कहा कि लोकतांत्रिक मूल्यों के
अवमूल्यन को रोकने के लिए सभी दलों को मिलकर एक सर्वमान्य बिल लोकसभा में लाना चाहिए , वजह राजस्थान , मध्यप्रदेश , कर्नाटक समेत कई राज्यों में अलग अलग समयों में जनादेश की अवहेलना हुुई! अब महाराष्ट्र मेंं भी वही संभावना है ।
पत्रकार भोलानाथ मिश्र ने कहा कि -ये न मेरे बस में है , न तेरे बस में है ,राजनीति तो एक चंचला है ,आज इसकी तो कल उसकी है । कहा कि अब आज़ादी के अमृत महोत्सव वाले वर्ष में राजनीतिक सुधार पर सभी दलों को एक मत होकर इसके लिए नए कानून बनाना चाहिए । यह भी गलत है कि एक व्यक्ति दो – दो जगहों से निर्वाचित हो कर एक सीट उपचुनाव के लिए खाली कर दे । इसकी वजह से मतदातों के मतों की अवहेलना तो होती ही है साथ ही चुनाव आयोग को
उप चुनाव कराने के लिए फिर
से श्रम व धन खर्च करने की
मजबूरी हो जाती है । विधायक
इस्तीफा दे कर लोकसभा में चुन
लिए जाते है । लोकसभा सदस्य
विधायक निर्वाचित हो जाते है ।
ऐसी सूरत में फिर वही प्रक्रिया
का बोझ मतदाताओं पर ही
पड़ता है । इस पर प्रभावी नियंत्रण के लिए आचार संहिता
तो बननी ही चाहिए ।