धिक्कार है धिक्कार है आज के मनुष्य को….. डॉ दिलीप कुमार सिंह*

*एक बहुत गहरी बात अपनी अंतरात्मा से कह रहा हूं ।पहले 99% लोगों के घर मकान मंदिर कच्चे घर घास फूस और झोपड़े के बने हुए होते थे लेकिन अधिकांश लोगों का श्रद्धा विश्वास और व्यवहार बिल्कुल पक्काअटूट होता था। आज अधिकांश लोगों के घर और मंदिर पक्के और आलीशान हो गए हैं लेकिन उनका व्यवहार श्रद्धा और विश्वास बिल्कुल कच्चा रेत के टीले की तरह हो गया है ।असली हंसी गायब हैं और केवल दिखावटीपन रह गया है। यहां तक कि लोग जबरदस्ती हंसते हैं तो उनका मुंह कई कोण बनाता है ।इतना ही नहीं जो बहुत सुंदर दिख रहा है उसको स्नान करने के तुरंत बाद देखेंगे तो फिर देखने का मन नहीं कहेगा। आज स्थितियां ऐसी हो गई है कि घर की मां बहन भाभी लोग और बहने तथा घर की स्त्रियां एक दुल्हन को सजा नहीं पाती और गंदे अपवित्र जगह पर ब्यूटी पार्लर में जाकर अपनी बहन बेटियों को विवाह के लिए सजाती हैं ,तो पवित्र शुभविवाह इस गंदे वातावरण की सजावट के आगे कैसे मजबूत और स्थाई होगा। उसका विवाह विच्छेद होना निश्चित है। इससे अधिक पतन देश और समाज का क्या होगा? अगर आज दो-तीन दिन के लिए 50 लोगों का भोजन किसी के घर बनाना हो तो वहां की स्त्रियां घर छोड़कर भाग जाएंगे! उनके बच्चे एक साथ रह नहीं पाएंगे! क्योंकि सबको अलग से मोबाइल ,अलग से कमरे, अलग से कूलर और पंखे और कुछ को तो अलग से ऐसी चाहिए।
एक छोटा सा गांव जिसमें पीपल की छांव ।गांव जाने कहां खो गया? क्या से क्या हो गया ?अद्भुत है !खुद तो रावण और मंथरा हैं और सब लोग अपने लिए राम और सीता जैसे भगवान के अवतार को खोजते हैं। गाय भैंस किसी के घर नहीं हैं ।गोबर कोई उठाना नहीं चाहता और सब लाल शुद्ध साढी़ वाला दूध खोजते हैं ।और ले आते हैं पाउडर और रसायनों से बना हुआ दूध। और चक्कर खाते हैं। पनीर मक्खन को नकली दूध मट्ठा दही मक्खन और दूध से बनी हुई जहरीली चीजें और सारे अंग प्रत्यंग खराब करके पैसा डॉक्टरों के यहां दे कर चले आते हैं।
धिक्कार है धिक्कार है धिक्कार है आज के मनुष्य को डॉ दिलीप कुमार सिंह*