गुरु पुर्णिमा एवं वर्षा ऋतु को समर्पितछंदकार – एडवोकेट गिरीश श्रीवास्तव

गुरु पुर्णिमा एवं वर्षा ऋतु को समर्पितछंदकार – एडवोकेट गिरीश श्रीवास्तव
गुरु पुर्णिमा एवं वर्षा ऋतु को समर्पित
छंदकार – एडवोकेट गिरीश श्रीवास्तव

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साध अगाध मोरे मन में, मन ही मन रूप निहारत बाई।।
आश्रम कैइ सुधि आवत बा, अनुरागी मना कैसे समुझाई।।
नेह क फूल उमा संग बैइठिके, चंदन रोरी लगावत बाई।।
गाढ़ गम्भीर गिरीश पुकारत, हे गुरुदेव तोहार दोहाई।।
मेटि दिहा तम तोम हिया कैइ, ज्ञान क दीप दिहा तु जराई।।
विश्व गुरु महिमा जग जाहिर गीता क मंत्र दिहा तु पढा़ई।।
का बरनी महिमा बउंनी बनिया से महाप्रभु का गुन गाई।।
गाढ़ गम्भीर गिरीश पुकारत हे गुरुदेव तोहार दोहाई।।।
काशी निवासी उमा संग गंग, विराजत पर्वत कंकर- कंकर।।
पालनहार तुहीं जग क जग जाहिर बा महिमा प्रलयंकर।।
हे बिसुनाथ अनाथ के नाथ मिटाइद ताप हिया क भयंकर।।
ब्रह्मा तुहीं बिसनू गुरुदेव, गिरीश उमापति हे शिव शंकर।।
हाथे जमें न दही मितउ, दुबिया पथरे पे असंभव जामें।।
काटि दिहें सगरी जिनगी, किछु पायेन नाहिं जियें दुबिधामें।।
काल क चाल विचित्र गिरीश, जियावैइ छाउं या जेठ के घामें ।।
धीर धरा गतिमान बा काल, जपा हरि नाम न आये केउ कामें।।
सावन भादउं नैइहर में,झुलना निमियां कैइ डारि पे झूली।।
फूट कतउ ककरी मंहकैइ मकई लहकैइ तिल उरद फूली।।
आवत बा सुधि मोहि सनेहीक कैइसे बतावा गिरीश के भूली।।
हे सखि जाइ बसे परदेश कलेश लगैइ सेजिया जस सूली।।
धरती परती मन मोद भरी, हरियाली मना के लुभावत बाटैइ।।
केलि कुलेल करैइ बदरा बदरी संग रास रचावत बाटैइ।।
सांची कहीत अकेल जिया घबराई गिरीश सतावत बाटैइ।।
आवा चला चलि भागि सखि, गरजैइ बदरा चढ़ि आवत बाटैइ।।
सांझ सबेर न देखत रे, उमडै़इ घुमड़ैइ सुधिया भरमावैइ।।
लोटतबा पुरुआ भुइंया, बहकैइ जियरा अखियां तरसावैइ।।
सूखा परा पछतात धरा कहूँ, बाढ़ गिरीश जिया डेरवावैइ।।
हे सखि सावन में बदरा, गरजैइ बरसैइ बिजुरी चमकावैइ।