मां श्रृंगार गौरी के नित्य दर्शन की अलख जलाने वाले अरुण पाठक को नहीं भूलना चाहिये
मां श्रृंगार गौरी के नित्य दर्शन की अलख जलाने वाले अरुण पाठक को नहीं भूलना चाहिये
वाराणसी विशेष संवाददाता
अनुराग पाण्डेय की रिपोर्ट
वाराणसी। काशी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद विवाद और माँ शृंगार गौरी के नित्य दर्शन को शुरू करवाने की मांग की खबरों से आज विश्वभर के लोग प्रतिदिन मुखातिब हो रहे हैं।
इस प्रकरण से जुड़े हर शख्स को छोटी-बड़ी मीडिया कवरेज दे रही है। उनके हरएक बयान को देश-दुनिया के सामने पेश किया जा रहा है। इसी बीच शृंगार गौरी के लिए जमीनी संघर्ष करने वाले उस इंसान को याद करना बेहद आवश्यक है जिसने माँ के नित्य दर्शन को शुरू करवाने के लिए एक नहीं दो-दो बार न सिर्फ रक्ताभिषेक किया है बल्कि शासन-प्रशासन से भी दुश्मनी मोल ली है। सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो उनका संघर्ष कभी रूका नहीं। हम बात कर रहे हैं हिन्दूवादी नेता अरुण पाठक की, जिन्होंने शिवसेना में रहते हुए शृंगार गौरी का नित्य दर्शन शुरू करवाने के लिए हर साल जुलूस प्रदर्शन किया। शिवसेना से त्यागपत्र देने के बाद भी उन्होंने अपना खुद का संगठन बनाकर अपना संघर्ष जारी रखा।
उक्त बातें सामने घाट स्थित वैष्णव मठ के महंत स्वामी सम्पतकुमाराचार्य ने एक वक्तव्य में कही। उन्होंने कहा कि अरुण पाठक एक ऐसे हिन्दूवादी नेता है जिनके कार्यों को प्रत्येक हिंदुओं को गर्व करना चाहिए। हिंदुत्व की रक्षा के लिए ही एक छोटे से
श्रृंगार गौरी के लिए अपना रक्ताभिषेक करने वाले अरुण पाठक जैसे हिन्दूवादी नेता को भूल गई है सरकार
नाटक मंचन के बाद प्रशासन ने अरुण पाठक और उनके परिवार को कई बार प्रताड़ित किया। बावजूद इसके उन्होंने हिंदू धर्म को प्रचारित प्रसारित करने का अभियान जारी रखा। उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद का मामला कई वर्षों से चल रहा है। अरुण पाठक जैसे हिन्दुवादी लोगों के संघर्ष के कारण ही बाबा और उनके नंदी को न्याय मिल गया। आने वाले दिनों में कोर्ट का फैसला भी हिन्दू पक्ष में होगा ऐसा हमारा मानना है। कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद विवाद और माँ शृंगार गौरी के नित्य दर्शन शुरू करवाने को लेकर 1995 से अरुण पाठक संघर्ष करते आ रहे हैं। उन्होंने दो-दो बार रक्ताभिषेक भी किया, इससे बड़ा हिन्दूसैनिक और कौन होगा ? आज पूरा देश जिस ज्ञानवापी मस्जिद और माँ शृंगार गौरी के प्रकरण को देख सुन रहा है उसका पूरा श्रेय श्रद्धेय अशोक सिंघल और अरुण पाठक जैसे हिन्दूवादी नेताओं की देन है। वर्तमान सरकार भले ही हिन्दुत्व के रक्षणार्थ कार्य कर रही है लेकिन उन्हें अरुण पाठक जैसे हिन्दूसैनिक को भी नहीं भूलना चाहिए।