सांसद बनने के बाद पांच साल तक घर बैठे योगी और मोदी के सहारे चुनाव जीतने का सपना संजोने वाले भाजपाईयो की हुई हार*

*सांसद बनने के बाद पांच साल तक घर बैठे योगी और मोदी के सहारे चुनाव जीतने का सपना संजोने वाले भाजपाईयो की हुई हार*

 

आइडियल इंडिया न्यूज़

डा ए के गुप्ता द्वारका नई दिल्ली

 

नई दिल्ली।

यूपी के लोकसभा चुनाव में हार का प्रमुख कारण पूर्व सांसदों की निष्क्रियता रही। जनता में नाराजगी थी। सांसद 2019 में चुनाव जीतने के बाद से पांच साल तक घर बैठने और सिर्फ मोदी-योगी के सहारे जीतने के सपने देखते रहे। परिणाम बता रहे हैं कि भाजपा को लगातार दो बार सत्ता की बुलंदी तक पहुंचाने वाला यूपी एक बार फिर से ‘गेमचेंजर’ साबित हुआ है। 2024 के चुनाव में भाजपा को सबसे बड़ा झटका उत्तर प्रदेश में लगा है।

सपा-कांग्रेस के गठबंधन ने भाजपा और उसके सहयोगी दलों के विजय रथ को यहां की कुल 80 सीटों में आधे से भी कम पर रोक दिया। क्लीन स्वीप यानि सभी 80 सीटें जीतने का दावा करने वाली भाजपा 33 सीटों पर सिमट गई। इसके चलते ही भाजपा अपने दम पर पूर्ण बहुमत का जादुई आंकड़ा हासिल नहीं कर सकी।

ऐसे में सवाल है कि 2014 और 2019 में पीएम मोदी को सत्ता तक पहुंचाने वाले यूपी में बीजेपी इस बार कैसे हार गई।

दरअसल, जिन सांसदों के खिलाफ माहौल होने के आधार पर संगठन की ओर से टिकट बदलने की रिपोर्ट हाईकमान को भेजी गई थी, उनमें अधिकांश सांसदों के बारे में यही कहा जाता रहा है कि चुनाव जीतने के बाद पांच साल तक यह जनता के बीच से गायब रहे। क्षेत्र से इनका जुड़ाव नहीं रहा। अपने पूरे कार्यकाल में जनता के बीच काम न करके ऐसे तमाम सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भरोसे बैठे रहे। इसी कारण तमाम सांसदों को जनता ने नकार दिया है।

माना जाता है कि भाजपा के रणनीतिकारों ने सांसदों के खिलाफ स्थानीय स्तर पर जनता के बीच उभरे असंतोष को समझे बगैर मैदान में उतरने की वजह से सात केंद्रीय मंत्रियों समेत कुल 26 मौजूदा सांसदों को सीट गंवानी पड़ी है। इस नाराजगी को नेतृत्व भांप नहीं सका।

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