मुकुट पूजा व नारद मोह के साथ रामलीला का हुआ शुभारंभ

मुकुट पूजा व नारद मोह के साथ रामलीला का हुआ शुभारंभ
आइडियल इंडिया न्यूज़
सरफराज अहमद मऊ
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चिरैयाकोट (मऊ), श्री रामलीला समिति युसुफाबाद चिरैयाकोट द्वारा आयोजित दस दिवसीय ऐतिहासिक व पारंपरिक रामलीला का शुभारंभ गुरुवार की रात को मुकुट पूजा व नारद मोह के साथ हुआ।इस अवसर पर सर्वप्रथम मुख्य अतिथि रामप्रताप यादव चेयरमैन नगर पंचायत चिरैयाकोट ने फीता काटकर रामलीला का उद्घाटन किया। तत्पश्चात रामलीला समिति के अध्यक्ष प्रेमचंद मौर्य , रामजी पाण्डेय, रामकुमार जायसवाल, महेंद्र मद्धेशिया,अशोक कुमार उपाध्याय, मदनमोहन पाण्डेय, महेंद्र मौर्य, मनोज मद्धेशिया,महेन्द्र पाण्डेय ,आशुतोष पाण्डेय आदि समिति के सदस्यों ने मुख्य अतिथि का माल्यार्पण कर भव्य स्वागत किया एवं उपाध्यक्ष सुभाष चंद्र जायसवाल ने अंगवस्त्रम देकर उन्हें सम्मानित किया। तत्पश्चात मुख्य अतिथि ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि पिछले 15 वर्षों से लगातार रामलीला समिति के पदाधिकारियों व सदस्यों ने रामलीला का उद्घाटन कर प्रभु श्रीराम की सेवा करने का जो अवसर दिया है। उसके लिए रामलीला समिति का मैं सदैव आभारी रहूंगा तथा जीवनपर्यंत रामलीला मंचन में हर संभव सहयोग करता रहूँगा।उसके बाद रामायण आरती के साथ मुकुट पूजा हुई। उसके बाद नारद मोह की मनोरम लीला का मंचन हुआ। जिसमें देवर्षि नारद हिमालय की तराई में तप कर रहे होते हैं। तभी इंद्र भगवान के गण लालदेव और कालादेव विचरण करते हुए वहां पहुंच जाते हैं और उन्हें तप करते हुए देख लेते हैं। जिसकी सूचना आकर इंद्र भगवान को देते हुए कहते हैं कि महाराज देवर्षि नारद अखंड तपस्या कर रहे हैं। यदि उनकी तपस्या पूरी हो गई तो वह आपका राजसिंहासन ले लेंगे।इस बात से चिंतित होकर महाराज इंद्र अपने मंत्री की सलाह पर कामदेव को कुछ परियों के साथ देवर्षि नारद जी की तपस्या भंग करने हेतु भेजते हैं। कामदेव के बाण मारने पर देवर्षि नारद इंद्र को डरपोक बताते हुए उनकी हंसी उड़ाते हैं। उसके बाद भगवान विष्णु और शंकर जी के पास जाकर कहते हैं कि आज मैंने कामदेव को जीत लिया। उसके बाद देवर्षि नारद शिलनिधि दरबार में पहुंचते हैं। वहां महाराज शीलनिधि अपनी पुत्री का हाथ देवर्षि नारद को दिखलाकर उसके भाग्य के विषय में पूछते हैं।जिसे देखकर नारद के मन में उनकी पुत्री से विवाह करने की जिज्ञासा उत्पन्न होती है।जिसके लिए वह भगवान विष्णु से उनका रूप एक दिन के लिए मांगते हैं और भगवान विष्णु उन्हें बंदर का स्वरूप देते हैं।जिसे लेकर देवर्षि नारद पुनः महाराज शीलनीधि के राजमहल में आते हैं। जहां उन्हें महाराज के दूत मिलते हैं और उन्हें उनका चेहरा पानी में दिखाकर उनकी हंसी उड़ाते हैं। जिससे क्रोधित होकर वह भगवान के विष्णु के पास जाते हैं और उन्हें श्राप देते हैं कि जिस तरह तूने मुझे बंदर का स्वरूप देकर मेरी हंसी उड़ाई है,एक दिन यही बंदर तेरे सहायक होंगे और तुम स्त्री वियोग में दर-दर भटकोगे। जिसे सुनकर भगवान विष्णु कहते हैं कि हे देवर्षि नारद यह श्राप मेरी इच्छा के अनुसार है।जिसे सुनते ही नारद का क्रोध शांत हो जाता है और वह उनसे क्षमा याचना करने लगते हैं। तभी दोनों गण देवर्षि नारद से क्षमा याचना करते तो देवर्षि नारद कहते हैं कि त्रेता युग में तुम दोनों घोर राक्षस होगे।तुम्हारा नाम रावण और इसका नाम कुम्भकर्ण होगा। निर्देशन व संचालन अश्क चिरैयाकोटी ने किया व प्रेमचंद मौर्य, सोहनलाल टी एम, भूपेंद्र मौर्य, यशवन्त पाण्डेय,प्रकाश पाण्डेय,विशाल मद्धेशिया, श्रीनिवास गुप्ता,उमेश मद्धेशिया,मोनू ,सोनू जायसवाल ने अपने शानदार अभिनय से सैकड़ों दर्शकों को देर रात तक बांधे रखा। इस अवसर पर भुआल मद्धेशिया, वीरेन्द्र यादव,पवन पाण्डेय पूर्व सभासद, संतोष वर्मा, हरेन्द्र यादव,मनीष सोनी,सिद्धू मद्धेशिया, श्रवण मद्धेशिया,शिवाश्रय पाण्डेय,अजीत यादव आदि लोग उपस्थित रहे।