काशी तमिल संगम में प्रधानमंत्री ने अपने उद्बोधन में कहा – काशी-तमिल संगमम् का ये आयोजन तब हो रहा है, जब भारत ने अपनी आज़ादी के अमृतकाल में प्रवेश किया है
काशी तमिल संगम में प्रधानमंत्री ने अपने उद्बोधन में कहा-
काशी-तमिल संगमम् का ये आयोजन तब हो रहा है, जब भारत ने अपनी आज़ादी के अमृतकाल में प्रवेश किया है।
आइडियल इंडिया न्यूज़
अनुराग पान्डेय वाराणसी
अमृतकाल में हमारे संकल्प पूरे देश की एकता और एकजुट प्रयासों से पूरे होंगे। भारत वो राष्ट्र है जिसने हजारों वर्षों से ‘सं वो मनांसि जानताम्’ के मंत्र से, ‘एक दूसरे के मनों को जानते हुये’, सम्मान करते हुये स्वाभाविक सांस्कृतिक एकता को जिया है। हमारे देश में सुबह उठकर ‘सौराष्ट्रे सोमनाथम्’ से लेकर ‘सेतुबंधे तु रामेशम्’ तक 12 ज्योतिर्लिंगों के स्मरण की परंपरा है। हम देश की आध्यात्मिक एकता को याद करके हमारा दिन शुरू करते हैं। हम स्नान करते समय, पूजा करते समय भी मंत्र पढ़ते हैं- गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥ अर्थात्, गंगा, यमुना से लेकर गोदावरी और कावेरी तक, सभी नदियां हमारे जल में निवास करें। यानी, हम पूरे भारत की नदियों में स्नान करने की भावना करते हैं। हमें आज़ादी के बाद हजारों वर्षों की इस परंपरा को, इस विरासत को मजबूत करना था। इसे देश का एकता सूत्र बनाना था। लेकिन, दुर्भाग्य से, इसके लिए बहुत प्रयास नहीं किए गए। काशी-तमिल संगमम् आज इस संकल्प के लिए एक प्लेटफ़ॉर्म बनेगा। ये हमें हमारे इस कर्तव्यों का बोध कराएगा, और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए ऊर्जा देगा।
साथियों,
भारत का स्वरूप क्या है, शरीर क्या है, ये विष्ण पुराण का एक श्लोक हमें बताता है, जो कहता है- उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥ अर्थात्, भारत वो जो हिमालय से हिन्द महासागर तक की सभी विविधताओं और विशिष्टताओं को समेटे हुये है। और उसकी हर संतान भारतीय है। भारत की इन जड़ों को, इन रूट्स को अगर हमें अनुभव करना है, तो हम देख सकते हैं कि उत्तर और दक्षिण हजारों किमी दूर होते हुये भी कितने करीब हैं। संगम तमिल साहित्य में हजारों मील दूर बहती गंगा का गौरव गान किया गया था, तमिल ग्रंथ कलितोगै में वाराणसी के लोगों की प्रशंसा की गई है। हमारे पूर्वजों ने तिरुप्पुगल के जरिए भगवान मुरुगा और काशी की महिमा एक साथ गाई थी, दक्षिण का काशी कहे जाने वाले तेनकासी की स्थापना की थी।
साथियों,
ये भौतिक दूरियां और ये भाषा-भेद को तोड़ने वाला अपनत्व ही था, जो स्वामी कुमरगुरुपर तमिलनाडु से काशी आए और इसे अपनी कर्मभूमि बनाया था। धर्मापुरम आधीनम के स्वामी कुमरगुरुपर ने यहां केदार घाट पर केदारेश्वर मंदिर का निर्माण कराया था। बाद में उनके शिष्यों ने तंजावुर जिले में कावेरी नदी के किनारे काशी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना की थी। मनोन्मणियम सुंदरनार जी ने तमिलनाडु के राज्य गीत ‘तमिल ताई वाड़्तु’ को लिखा है। कहा जाता है कि उनके गुरू कोडगा-नल्लूर सुंदरर स्वामीगल जी ने काशी के मणिकर्णिका घाट पर काफी समय बिताया था। खुद मनोन्मणियम सुंदरनार जी पर भी काशी का बहुत प्रभाव था। तमिलनाडु में जन्म लेने वाले रामानुजाचार्य जैसे संत भी हजारों मील चलकर काशी से कश्मीर तक की यात्रा करते थे। आज भी उनके ज्ञान को प्रमाण माना जाता है। सी राजगोपालाचारी जी की लिखी रामायण और महाभारत से, दक्षिण से उत्तर तक, पूरा देश आज भी inspiration लेता है। मुझे याद है, मेरे एक टीचर ने मुझे कहा था कि तुमने रामायण और महाभारत तो पढ़ ली होगी, लेकिन अगर इसे गहराई से समझना है तो जब भी तुम्हे मौका मिले तुम राजाजी ने जो रामायण महाभारत लिखेंगे, वो पढ़ोगे तो तुम्हे कुछ समझ आएगा। मेरा अनुभव है, रामानुजाचार्य और शंकराचार्य से लेकर राजाजी और सर्वपल्ली राधाकृष्णन तक, दक्षिण के विद्वानों ने भारतीय दर्शन को समझे बिना हम भारत को नहीं जान सकते, ये महापुरुष हैं, उनको हमें समझना होगा।
साथियों
आज भारत ने अपनी ‘विरासत पर गर्व’ का पंच-प्राण सामने रखा है। दुनिया में किसी भी देश के पास कोई प्राचीन विरासत होती है, तो वो देश उस पर गर्व करता है। उसे गर्व से दुनिया के सामने प्रमोट करता है। हम Egypt के पिरामिड से लेकर इटली के कोलोसियम और पीसा की मीनार तक, ऐसे कितने ही उदाहरण देख सकते हैं। हमारे पास भी दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा तमिल है। आज तक ये भाषा उतनी ही पॉपुलर है, उतनी ही alive है। दुनिया में लोगों को पता चलता है कि विश्व की oldest language भारत में है, तो उन्हें आश्चर्य होता है। लेकिन हम उसके गौरवगान में पीछे रहते हैं। ये हम 130 करोड़ देशवासियों की ज़िम्मेदारी है कि हमें तमिल की इस विरासत को बचाना भी है, उसे समृद्ध भी करना है। अगर हम तमिल को भुलाएंगे तो भी देश का नुकसान होगा, और तमिल को बंधनों में बांधकर रखेंगे तो भी इसका नुकसान है। हमें याद रखना है- हम भाषा भेद को दूर करें, भावनात्मक एकता कायम करें।
साथियों,
काशी-तमिल संगमम्, मैं मानता हूँ, ये शब्दों से ज्यादा अनुभव का विषय है। अपनी इस काशी यात्रा के दौरान आप उनकी मेमरीज़ से जुड़ने वाले हैं, जो आपके जीवन की पूंजी बन जाएंगे। मेरे काशीवासी आपके सत्कार में कोई कमी नहीं छोड़ेंगे। मैं चाहता हूँ, तमिलनाडु और दक्षिण के दूसरे राज्यों में भी इस तरह के आयोजन हों, देश के दूसरे हिस्सों से लोग वहाँ जाएँ, भारत को जियें, भारत को जानें। मेरी कामना है, काशी-तमिल संगमम् इससे जो अमृत निकले, उसे युवा के लिए रिसर्च और अनुसंधान के जरिए आगे बढ़ाएँ। ये बीज आगे राष्ट्रीय एकता का वटवृक्ष बने। राष्ट्र हित ही हमारा हित है – ‘नाट्टु नलने नमदु नलन’। ये मंत्र हमारे देशवासी का जीवनमंत्र बनना चाहिए। इसी भावना के साथ, आप सभी को एक बार फिर ढेरों शुभकामनायें।