पहिले तुम इंसान बनो “अवधी कविता — लेखक – आनन्द गिरि मायालु नेपालगंज, लुंबिनी (नेपाल)

अवधी कविता —
लेखक – आनन्द गिरि मायालु
नेपालगंज, लुंबिनी (नेपाल)
” पहिले तुम इंसान बनो ”
मुल्ला पंडित बनि का करिहो, न राम रहमान बनो।
धरतिक सबसे बुद्धिमान तुम, पहिले तुम इंसान बनो।।
बुद्ध महावीर गुरु नानक विवेकानंद राम भगवान बनो।
कर्म करो जग मा प्रतापी सबकै खातिर महान बनो।।
गांजा बीड़ी छोडी तमाखू जग मा तुम बलवान बनो।
जीव जगत कै रक्षक बनि कै तुम्हूं दयावान बनो।।
देश समाज कै हित तुम सोंचो सब कै तुम जान बनो।
महतारी बाप कै सेवक बनि उनके तुम अभिमान बनो।।
पद पैसा पॉवर सब झूठ कबहूं न हैवान बनो।
जिन्दगिक उद्देश्य पुरा करे पहिले तुम इंसान बनो।।
हरे भरे बिरवा न काटो जीव हत्या कै न तुम हैवान बनो।
सादा जीवन अपनाय कै सबसे बडे़ महान बनो।।
मुर्गा मछरी गाय न खायो दिन दुखिक भगवान बनो।
दुःख कै कारण कबहूं न बनेव सबकै तुम महान बनो।।
जात धर्म से विभेद न करेव सब कै खातिर तुम शान बनो।
चोरी, झूंठ, बेईमानी कै तुम कबहूं न शैतान बनो।।
मनई तन पाए हो जग मा पहिले तुम इंसान बनो।
कर्म करो तुम अस जग मा जस राम भगवान बनो।।
पाप पुण्य सोचों धनी गरीब छोट बडे सब कै सम्मान करो।
मरेक बादौ नाउ अमर होय, कबहूं न अभिमान करो।।
मालिक, हाकिम, नेता, अफसर सबसे पहिले इंसान बनो।
इंसान बनो महान बनो कलयुग कै भगवान बनो।।